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लोग समझते है कि राधा और कृष्ण अलग-अलग है किंतु वैद पुराणों के अनुसार इन्हें प्रेमी भक्त ही समझ सकते है। वास्तव में व्यक्ति के हृदय में जैसे-जैसे प्रेम बढ़ता है
राधा का भाव जागृत होने लगता है और जैसे-जैसे व्यक्ति भावों में डूबता है तब उसका कृष्ण तत्व जागृत होने लगता है। इस गुत्थी को सिर्फ अनुभव करने वाला ही जान सकता है
पर वह भी उसे शब्दों में व्यक्त नहीं कर पाता लोग कहते है कि कृष्ण तो रसिक थे किन्तु यह उपरी स्तर की बात है उसे सिर्फ प्रेम और भावो में डूब कर ही पाया जा सकता है।
उक्त उदगार खालवा के ग्राम गुलाईमाल में चल रही भागवत कथा के तृतीय दिवस श्री कृष्णप्रियाजी महाराज ने व्यक्त किए। क
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जीवन क्या है और यह क्यों मिला है। व्यक्ति के मन में इसी प्रकार के तमाम सवाल चलते हैं। मोक्ष प्राप्ति के लिए मनुष्य क्या नहीं करता फिर भी अपने पथ से भटक कर पाप
के मार्ग पर चला जाता है। जीवन में सबसे बड़ा कष्ट देने वाला मात्र एक शब्द 'मैं' है। जब तक मन से इसे नहीं निकाला जाएगा जब तक इस संसार के मरहम का बोध नहीं होगा।
मैं करने वाला हूँ ! जब तक यह भाव रहेगा आपकी चिंता अशांति मिटने वाली नही है। मैं करने वाला हूँ ! इस भाव में ही आपका अहंकार है और जहां अहंकार है वहां मोह है, क्रोध है,
विषमता है, दुख है, द्वेष और अशांति है।
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श्रीमद्भागवत कथा में भारतीय धर्म और संस्कृति का समावेश है। श्रद्धालु श्रोताओं को भागवत कथा प्रथम दिन से ही सुनने की जरूरत है। आवश्यकता सिर्फ इस बात की है
कि कथा प्रागंण में आने के पूर्व अपने आचरण को पूरी तरह पवित्र बना लें। शुद्ध मन से कथा का श्रवण करें मोक्ष का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा।
उक्त बातें गोशाला में आयोजित भागवत कथा के पहले दिन वृंदावन से पधारी कृष्ण प्रिया जी महाराज ने कही। सात दिवसीय कथा का आयोजन जगदगुरु सेवा
समिति की ओर से किया जा रहा है। कृष्ण प्रिया जी महाराज ने कहा कि धर्म के साथ समाज सेवा का दायित्व हर किसी के लिए परम आवश्यक है।